Thursday, July 25, 2013

[panchsheel_wellington] टेस्ट ट्यूब बेबी तकनीक तथा सेरोगेसी (उधार गोद) :आज के संदर्भ मे



टेस्ट ट्यूब बेबी तकनीक तथा सेरोगेसी (उधार गोद) :आज के संदर्भ  मे 
डॉ.रंजू नकिपुरिया ,सीनियर स्त्री रोग और प्रजनन विशेषज्ञ
डॉ.डी .आर .नकिपुरिया ,सीनियर फिजीशियन व गेस्टरों विशेषज्ञ
1420,महागुण,मिलनों,क्रॉसिंग रिपब्लिक,गाजियाबाद,दिल्ली एनसीआर  
01202845505,07838059592,07503303359 

हिंदी सिनेमा के सुपरस्‍टार शाहरुख खान और उनकी पत्‍नी गौरी खान के आईवीएफ तकनीक से मां-बाप बनने की खबर ने एक बार फिर से आईवीएफ के बारे में लोगों में उत्‍सुकता पैदा कर दी है। वैसे इससे पहले इन दोनों का सामान्‍य तरीके से दो बच्‍चे हो चुके हैं, जो अब बड़े भी हो चुके हैं। इसी तरह मिस्‍टर परफेक्‍शनिस्‍ट आमिर खान ने भी अपनी दूसरी पत्‍नी किरण को सरोगेसी के जरिए ही मां बनने का सुख प्रदान किया। आईवीएफ को सामान्‍य या बोलचाल की भाषा में लोग टेस्‍ट ट्यूब बेबी या परखनली शिशु कह देते हैं। आईवीएफ इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (in vitro fertilization) तकनीक है। आप इसे इन विट्रो गर्भाधान तकनीक के रूप में समझिए जो बांझपन (infertility) की समस्‍या से जूझते शादीशुदा स्‍त्री पुरुष को मां-बाप बना देती है!

आईवीएफ तकनीक से स्‍त्री-पुरुष दोनों के बांझपन का कारगर इलाज किया जाता है। इलाज के लिए आने वाले पति पत्‍नी की पूरी जांच की जाती है, लेकिन जांच के बावजूद यदि गर्भधारण का कोई स्‍पष्‍ट कारण पकड़ में नहीं आ रहा है तो गर्भणारण के लिए इन विट्रो गर्भाधान एक बेहद सफल तरीका है। इसमें स्‍त्री के परिपक्‍व अंडा (egg) व पुरुष के स्‍वस्‍थ्‍य शुक्राणु(sperm) को प्रयोगशाला में शरीर की स्थितियों वाले तापमान पर 12 से 18 घंटे तक साथ रखा जाता है। इनका मिलन होने पर इस निषेचित बीज को स्‍त्री की बच्‍चेदानी में प्रत्‍यारोपित कर दिया जाता है।

आईवीएफ की सफलता दर
आईवीएफ विशेषज्ञ डॉ. मनिका खन्‍ना के मुताबिक, कभी आईवीएफ ट्रीटमेंट में सफलता की गारंटी मुश्किल से 10-15 प्रतिशत थी, लेकिन अच्छे कृत्रिम प्रजनन केन्द्रों में इसका प्रतिशत 60  फीसदी से ऊपर है। कृत्रिम प्रजनन तकनीकों को लेकर अक्सर यह आशंका जताई जाती है कि कहीं इनमें भी लिंग का चुनाव तो नहीं होता लेकिन कृत्रिम प्रजनन तकनीक अभी तक इससे मुक्त हैं। वैसे टेस्ट ट्यूब बेबी तकनीक में निषेचन के लिए स्वस्थ्य अंडाणु एवं शुक्राणु का चुनाव अब सम्भव हो गया है।

स्‍त्री बांझपन और उसका आईवीएफ ट्रीटमेंट
डॉ. मनिका खन्‍ना के मुताबिक, स्‍त्री बांझपन की सबसे बड़ी वजह उनकी फेलोपियन ट्यूब में उत्‍पन्‍न गड़बड़ी है। फेलोपियन ट्यूब में गड़बड़ी के कारण अंडा बाहर नहीं आ पाता है। ऐसे में आईवीएफ तकनीक से इलाज के दौरान उसके अंडे को गर्भाशय से ही उठा लिया जाता है। बाहर प्रयोगशाला में उस अंडे का निषेचन (fertilization) पति के शुक्राणु से कराया जाता है। भ्रूण बनने पर उसे वापस स्‍त्री के गर्भाशय में प्रत्‍यारोपित कर दिया जाता है।

यदि स्‍त्री का अंडा दोषपूर्ण है तो किसी अंडाणु दाता (egg donor) महिला के अंडाणु  का उसके पति के स्‍वस्‍थ्‍य शुक्राणु से निषेचन कराया जाता है और फिर बाद में उसे गर्भाशय में प्रत्‍यारोपित कर दिया जाता है।

पुरुष बांझपन और उसका इलाज
डॉ. मनिका खन्‍ना के मुताबिक, यदि पुरुष का शुक्राणु कमजोर, गतिहीन या निषेचन के योग्‍य नहीं है तो किसी अज्ञात शुक्राणुदाता (sperm donor) के शुक्राणु से स्‍त्री के अंडे का निषेयन कराया जाता है, लेकिन इससे पहले पति-पत्‍नी दोनों को इसकी जानकारी दी जाती है और उनसे सहमति ली जाती है। बाद में इस भ्रूण को महिला के गर्भाशय में प्रत्‍यारोपित कर दिया जाता है। आमतौर पर बांझपन के शिकार पुरुषों के वीर्य में शुक्राणु की संख्‍या या तो बेहद कम होता है, कमजोर होता है या बेहद गतिहीन होता है। इस कारण वह स्‍त्री के अंडे को निषेचित करने में सक्षम नहीं हो पाता।

पुरुष के वीर्य में स्‍पर्म की संख्‍या कम होने पर इंट्रो साइटोप्‍लाज्मिक स्‍पर्म इंजेक्‍शन (इक्‍सी) का प्रयोग किया जाता है। इस तकनीक में माइक्रोस्‍कोप की सहायता से स्‍वस्‍थ्‍य शुक्राणु को स्‍त्री के अंडाणु में इंजेक्‍शन के जरिए प्रवेश कराया जाता है। इस तकनीक के कारण आईवीएफ की सफलता दर बढ़ जाती है।

आईवीएफ-सरोगेसी: प्रयासों की श्रृंखला
आईवीएफ तकनीक में पहला प्रयास प्रयोगशाला में मां के अंडे व पिता के शुक्राणु का निषेचन कर उससे निर्मित भ्रूण को मां के गर्भ में प्रत्‍यारोपित करना होता है। कमजोर शुक्राणु या दोषपूर्ण अंडाणु होने पर दूसरा प्रयास डोनर के स्‍पर्म/ एग की सहायता लेना होता है। यदि पति का शुक्राणु दोषपूर्ण है तो डोनर के स्‍पर्म की सहायता से पत्‍नी के अंडाणु का निषेचन कराया जाता है और यदि पत्‍नी के अंडाणु में दोष है तो डोनर के एग से पति के शुक्राणु का निषेचन कराया जाता है।

इसके इतर एक स्थिति वह होती है, जब पति पत्‍नी दोनों के ही शुक्राणु व अंडाणु दोषपूर्ण होते हैं। ऐसी स्थिति में डोनर के स्‍वस्‍थ्‍य शुक्राणु व अंडाणु का निषेचन प्रयोगशाला में कराया जाता है और बाद में उस बीज को पत्‍नी के गर्भ में प्रत्‍यारोपित कर दिया जाता है। इन तीनों ही स्थिति में डोनर स्‍त्री-पुरुष का नाम किसी को पता नहीं चलता है।

इसके बाद की स्थिति सरोगेसी (surrogacy) की है। यदि पत्‍नी के गर्भाशय में ही खराबी है तो फिर किसी महिला के किराए की कोख लेकर उसमें प्रयोगशाला में निषेचित हुए भ्रूण का प्रत्‍यारोपण कर दिया जाता है। इन चारों ही स्थिति में दंपत्तियों की इजाजत ली जाती है। इसमें शुक्राणु या अंडाणुदाता के नाम का कभी पता नहीं चलता है। सरोगेट मदर से भी बांड भरवाया जाता है। इन सभी विधियों को भारत में कानूनी मान्‍यता हासिल है। 

 

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drn


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